Wednesday 11 November 2015

लहेरियासाय मे हम कनियाँ पुतरा  पुराने कपड़ों का बनाते सजाते और अष्टदल अरिपन के बीच मेए रख धान का लावा बताशा चढाते दिया जलाकर फूलझडी जलाकर दीवाली मनाते।
गाँव मे उसी जगह वाले दिया  मे उक्कापाती घर के मुखिया जलाकर बाहर मैदानमे आते जहाँ गाँव के बारहो वर्ण उक्कापाती फेरते।
मृण्मयी मूर्तियाँ सजावट के लिये खरीदी जाती।
गणेश और लक्ष्मी का पूजन शहरी वणिक बन्धुओ से सीखा
पटना मे बजाप्ता  जिनके घर बेटियाँ होती वहाँ घरौदे बनते।हमने इसे ग्रहण किया।
मेरी बेटियाँ अपने भाई के साथ मिलकर
ईट गिलावे से घरौदे बना तरह तरह से सजाती कुल्हिया चुकिया मे खील बताशे भरती।
अब नातिन और पोती की पारी है।
मेरी पोती लखिमा खासी आर्टिस्टिक है।अरिपन रंगोली बनाती है परर घरौदे खरीद कर लाती है।


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